हमसफ़र



राह चलते कोई मुसाफ़िर
अपनो से ज़्यादा अपना लगता है
कुछ नहीं तो
दो कदम साथ तो चलता है
अपने तो ऐसे ही मुंह फेर
लेते हैं.

जब अपने मुकर जातें हैं
और कोई अनजाना सा आप के पास
आप के साथ खड़ा होता है
शायद उसीको लोग फ़रिश्ता कहते हैं.

भगवान को मंदिर में ढूँडने से कहाँ मिलते हैं
अपने ही आस पास ढुंडलो
या खुद ही की अंदर में झांकलो
वोही कोने में भगवान भी है
और हैवान भी.

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