Posts

Showing posts from August, 2015

अंतहीन

   अंतहीन चाहतों के समुंदर में , ये ज़िंदगी बैठी है ना खुलके हँसती है , ना जीती है सबकुछ के अंदर खुद को अधूरा पाती है अनगिनत चाहतों के दल - दल में फँसी हुई ये ज़िंदगी , कमियों   और खामियों की लंबी सूची बाँधने चली है                                                     (1) “ ये ऐसा होना था , नहीं हुआ ” “ मुझे वो नहीं मिला ” और “ मिला भी तो क्या मिला ” “ और उसने ऐसा बोल्दिया " तो फिर  " और किसीने कुछ ना बोला ” ऐसे ऐसे ना जाने कितने फरियादों को लेके बैठी है                               ...